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श्रीसांवलियाजी प्राकट्य स्थल मंदिर पर आयोजित पांच दिवसीय कलश एवं ध्वजारोहण का समापन
श्रीसांवलियाजी प्राकट्य स्थल मंदिर कमेटी के तत्वावधान में सांवलिया सेठ के जयकारों के बीच पं.विश्वनाथ आमेटा के सानिध्य में वैदिक मंत्रोच्चार के साथ नवनिर्मित शिखर पर स्वर्ण कलश एवं ध्वजादंड चढ़ाया गया। इसके साथ ही पांच दिवसीय कलश एवं ध्वजारोहण कार्यक्रम का समापन पूर्णाहुति के साथ हुआ। कलश स्थापना के बाद पुष्पवर्षा की गई। इसके बाद भगवान सांवलिया सेठ की महाआरती की गई। महाआरती में श्रद्घालु ताशे एवं बैंडबाजों की धुनों पर नृत्य कर रहे थे। महाआरती के बाद सामूहिक भोज का आयोजन कर प्रसाद वितरित किया गया।
सांवलियाजी के दर्शनार्थ श्रद्धालु सुबह से ही प्राकट्य स्थल मंदिर पहुंचने लगे। जिससे सुबह मंगला आरती के समय से ही लम्बी कतार लगने लगी। श्रद्धालुओं ने सांवलियाजी के जयकारे लगाते हुए घंटों कतार में लगकर सांवलिया सेठ के दर्शन किए। पुजारी चांदुदास व हीरादास वैष्णव ने भगवान को गोमूत्र, गंगाजल से स्नान करवाकर स्वर्ण वागा धारण करवाया। गले में गुलाब की मालाएं व सिर पर मोर पंख धारण करवाया। इत्र, चंदन अर्पित किए व फूलों की झांकी सजाई। इस मौके पर मंदिर मंडल के अध्यक्ष एवं राज्य के पूर्व सचिव मिठालाल मेहता, उपाध्यक्ष बाबुलाल ओझा, गंगाराम जाट, कोषाध्यक्ष अशोक अग्रवाल, छोगालाल सुथार, रामप्रसाद सारस्वत, रतनलाल जाट, शंकरसिंह गुड़्डा समेत हजारों की संख्या में श्रद्घालु मौजूद थे।
अच्छे कार्यों में विघ्न न डाले
कार्यक्रम में यज्ञ आचार्य पं. विश्वनाथ आमेटा ने कहा कि अच्छे कार्यों में कभी विघ्न नही डालना चाहिए। बुरे कार्य करने वालों का कभी साथ नहीं देना चाहिए। उन्होंने कहा कि जो ज्ञान जोडऩे में लगना चाहिए, वह तोडऩे में लग रहा है। अभी भी आंखें नहीं खुली तो आने वाली सात पीढिय़ां हमें माफ नहीं करेगी। अपने आत्मारूपी कमरे में सद्गुणों की महक भरें। हम आने वाली पीढ़ी को क्या देना चाहते इस दिशा में चिंतन करना चाहिए।
श्रीसांवलियाजी प्राकट्य स्थल मंदिर पर आयोजित पांच दिवसीय कलश एवं ध्वजारोहण का समापन
श्रीसांवलियाजी प्राकट्य स्थल मंदिर कमेटी के तत्वावधान में सांवलिया सेठ के जयकारों के बीच पं.विश्वनाथ आमेटा के सानिध्य में वैदिक मंत्रोच्चार के साथ नवनिर्मित शिखर पर स्वर्ण कलश एवं ध्वजादंड चढ़ाया गया। इसके साथ ही पांच दिवसीय कलश एवं ध्वजारोहण कार्यक्रम का समापन पूर्णाहुति के साथ हुआ। कलश स्थापना के बाद पुष्पवर्षा की गई। इसके बाद भगवान सांवलिया सेठ की महाआरती की गई। महाआरती में श्रद्घालु ताशे एवं बैंडबाजों की धुनों पर नृत्य कर रहे थे। महाआरती के बाद सामूहिक भोज का आयोजन कर प्रसाद वितरित किया गया।
सांवलियाजी के दर्शनार्थ श्रद्धालु सुबह से ही प्राकट्य स्थल मंदिर पहुंचने लगे। जिससे सुबह मंगला आरती के समय से ही लम्बी कतार लगने लगी। श्रद्धालुओं ने सांवलियाजी के जयकारे लगाते हुए घंटों कतार में लगकर सांवलिया सेठ के दर्शन किए। पुजारी चांदुदास व हीरादास वैष्णव ने भगवान को गोमूत्र, गंगाजल से स्नान करवाकर स्वर्ण वागा धारण करवाया। गले में गुलाब की मालाएं व सिर पर मोर पंख धारण करवाया। इत्र, चंदन अर्पित किए व फूलों की झांकी सजाई। इस मौके पर मंदिर मंडल के अध्यक्ष एवं राज्य के पूर्व सचिव मिठालाल मेहता, उपाध्यक्ष बाबुलाल ओझा, गंगाराम जाट, कोषाध्यक्ष अशोक अग्रवाल, छोगालाल सुथार, रामप्रसाद सारस्वत, रतनलाल जाट, शंकरसिंह गुड़्डा समेत हजारों की संख्या में श्रद्घालु मौजूद थे।
अच्छे कार्यों में विघ्न न डाले
कार्यक्रम में यज्ञ आचार्य पं. विश्वनाथ आमेटा ने कहा कि अच्छे कार्यों में कभी विघ्न नही डालना चाहिए। बुरे कार्य करने वालों का कभी साथ नहीं देना चाहिए। उन्होंने कहा कि जो ज्ञान जोडऩे में लगना चाहिए, वह तोडऩे में लग रहा है। अभी भी आंखें नहीं खुली तो आने वाली सात पीढिय़ां हमें माफ नहीं करेगी। अपने आत्मारूपी कमरे में सद्गुणों की महक भरें। हम आने वाली पीढ़ी को क्या देना चाहते इस दिशा में चिंतन करना चाहिए।
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