निखरने लगा सांवलियाजी मंदिर का स्वरूप

भैरूलाल सोनी & सांवलियाजी
गुजरात के अक्षरधाम की तर्ज पर मंदिर कर मुख्य शिखर 121 फीट ऊंचा है जो दूर से दिखाई देगा। मंदिर में मुख्य शिखर के निकट 70 फीट उंचाई के दो शिखर, तीन गुम्बद तथा छ: गर्भगृह बनाएं गए हैं। नीचे स्ट्रांग रूम तथा बाहर लम्बा चौड़ा बरामदा बना है। मंदिर के निमार्ण में बंशी पहाड़पुरा, धौलपुर के लाल पत्थर का उपयोग किया गया है। जिन पर सुंदर नयनाभिराम फूल पत्तियां, वाद्य यंत्र बजाते हुए नर-नारी, द्वारपाल व देवी-देवताओ की छवियां उकेरी गई है। मंदिर के द्वारों पर शीशम के किवाड़ मय नक्काशी के लगाए गए है। सांवलियाजी के स्थापना स्थल पर रजत मंदिर व आसन है। अब पृष्ठ भाग में सोने की पिछवाई बनना प्रस्तावित है। इस मंदिर के निमार्ण में कहीं भी लोहे का उपयोग नहीं किया गया है। सांवलियाजी मंदिर को ठण्डा रखने के लिए मंदिर में लगभग 10 लाख रूपये की लागत से कूलिंग सिस्टम लगाया गया है।

लगभग डेढ़ शताब्दी पुराने मंदिर में विराजीत श्री सांवलियाजीका विग्रह मूल रूप से विष्णु भगवान के चतुर्भुज स्वरूप है, जो हर किसी को आकर्षित करता है, लेकिन आरम्भ से ही इनकी पूजा कृष्ण के रूप में की जाती रही है। सांवलियाजी के इस गांव में आगमन से लेकर वर्तमान तक इनके चमत्कारो को लेकर कई किवदंतियां प्रचलित हैं। सांवलियाजी के द्वार पर सच्चे मन से की गई प्रार्थना व मनोकामना अवश्य पूरी होती है। मंदिर परिसर में शिव परिवार, हनुमानजी व चामुण्डा माता के मंदिर भी है, उनके लिए भी नए मंदिर बनकर तैयार हो चुके हंै। गुप्तेश्वर महादेव का मंदिर बनकर भगवान यथावत विराजित है। यूं तो भगवान सांवलियाजी के यहां हर अमावस्या को मासिक मेला लगता है, लेकिन मुख्य मेला जलझूलनी एकादशी के दिन लगता है। दोपहर में 12 बजे से 2.30 बजे को छोड़कर सुबह 5.30 बजे से रात्रि 11 बजे तक दर्शन होते है।

सांवला सेठ के मंदिर में बढ़े भक्त भंडार
पिछले तीन दशको में ही तेजी से बढ़ी श्रद्धालुओं की संख्या व भण्डार की आय से चित्तौडग़ढ़ जिले का सांवलियाजी मंदिर आज राजस्थान के प्रमुख कृष्णधाम के रूप में सामने आ गया है। मेवाड़ एवं मालवा क्षेत्र के अनन्य आराध्य सांवलियाजी महाराज के मंदिर की ख्याति व आय लगभग डेढ़ सौ बरस पूर्व हुई स्थापना के समय से ही निरंतर बढ़ती ही रही है। 1980 से लेकर 2009 तक के काल में तो मंदिर की ख्याति में आश्चर्यजनक रूप से फैलाव आया है। जिसमें गुजरात के अक्षरधाम की तर्ज पर भव्य मंदिर तथा बस स्टैंड, विश्रांतिगृह, धर्मशालाओं, चिकित्सालयों, गोशाला व महाविद्यालय आदि बन गए हंै। आज मंदिर में देश के कोने कोने से श्रद्धालु पहुंच रहे हैं तथा प्रतिवर्ष करोड़ों रूपए की आय भण्डार से हो रही है। निरंतर निमार्ण कार्य चलने से लोग कहने लगे हैं कि भगवान सांवलिया सेठ की यहां अमर टांकी है और भंडार से भरपूर राशि निकलने के कारण ही भगवान सांवलियाजी को सांवलिया सेठ कहा जाने लगा जो कि अनूठी बात है क्योंकि आमतौर पर कहीं भी भगवान के नाम के आगे सेठ नहीं लगता है।



50 करोड़ का मंदिर

115 बीघा भूमि अवाप्ती की कार्रवाई शुरू

मंदिर प्रशासन का इतिहास

अक्षरधाम की तर्ज पर हो रहा निर्माण

सांवलियाजी मंदिर के आरम्भिक काल में तो गांव एवं क्षेत्र के लोग मिलकर काम करते रहते थे। काम बढऩे पर 1956 में कार्यकारिणी का पंजीयन कराया गया तथा क्षेत्र के गांवों से 65 सदस्य होते थे। जिनमें से बनी 16 जनों की कार्यकारिणी व्यवस्था संचालित करती थीं। अनियमितता की शिकायत पर वर्ष 1991 में राज्य सरकार ने मंदिर को अधिगृहित कर लिया तब से सरकार के निर्देशन से बना 11 सदस्यीय बोर्ड इसका संचालन करता है। जिसमें देवस्थान संभागीय आयुक्त, कलेक्टर व अतिरिक्त कलेक्टर के साथ जनप्रतिनिधि सदस्य होते हैं। बोर्ड न रहने की अवस्था में कलेक्टर को प्रशासक बनाया जाता है। चित्तौडग़ढ़ जिले के अतिरिक्त जिला कलेक्टर प्रशासक पदेन रूप से मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी होते हैं।



कॉरीडोर निर्माण पूर्ण होने के साथ ही मंदिर के सामने तथा बांई ओर के क्षेत्र में गार्डन, सड़क व मेला ग्राउंड आदि योजनाएं प्रस्तावित है, जिसके लिए वर्ष 2007 में ही मंदिर प्रशासन ने इस क्षेत्र में आने वाली लगभग 115 बीघा भूमि की अवाप्ती की कार्रवाई शुरू कर दी थी। इसमें अभी भूमि अवाप्ती की धारा 9 व अवार्ड नोटिस जारी किए जाने की प्रकिया चल रही है।



पूर्व में दो बार पुननिर्मित हो चुके सांवलियाजी मंदिर की महत्वाकांक्षी मंदिर विस्तार व उद्यान निमार्ण योजना 1996 में तत्कालीन बोर्ड द्वारा लाई गई। इसमे लगभग 20 करोड़ रूपए की लागत से मुख्य मंदिर निर्माण कराया गया। अब केवल शिखर पर कलश चढ़ाने का काम शेष है। अगले चरण में 24 करोड़ रुपए की लागत से कॉरीडोर का निमार्ण हो रहा है। कलश व इस पर सोना एवं अन्य कार्य मिलाकर लगभग दो साल में मुख्य मंदिर व कॉरीडोर बन कर पूर्ण होगा। इस पर कुल लगभग 50 करोड़ रूपये खर्च होगे।





जयकारों के साथ हुई स्वर्ण कलश स्थापना

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श्रीसांवलियाजी प्राकट्य स्थल मंदिर पर आयोजित पांच दिवसीय कलश एवं ध्वजारोहण का समापन

श्रीसांवलियाजी प्राकट्य स्थल मंदिर कमेटी के तत्वावधान में सांवलिया सेठ के जयकारों के बीच पं.विश्वनाथ आमेटा के सानिध्य में वैदिक मंत्रोच्चार के साथ नवनिर्मित शिखर पर स्वर्ण कलश एवं ध्वजादंड चढ़ाया गया। इसके साथ ही पांच दिवसीय कलश एवं ध्वजारोहण कार्यक्रम का समापन पूर्णाहुति के साथ हुआ। कलश स्थापना के बाद पुष्पवर्षा की गई। इसके बाद भगवान सांवलिया सेठ की महाआरती की गई। महाआरती में श्रद्घालु ताशे एवं बैंडबाजों की धुनों पर नृत्य कर रहे थे। महाआरती के बाद सामूहिक भोज का आयोजन कर प्रसाद वितरित किया गया।

सांवलियाजी के दर्शनार्थ श्रद्धालु सुबह से ही प्राकट्य स्थल मंदिर पहुंचने लगे। जिससे सुबह मंगला आरती के समय से ही लम्बी कतार लगने लगी। श्रद्धालुओं ने सांवलियाजी के जयकारे लगाते हुए घंटों कतार में लगकर सांवलिया सेठ के दर्शन किए। पुजारी चांदुदास हीरादास वैष्णव ने भगवान को गोमूत्र, गंगाजल से स्नान करवाकर स्वर्ण वागा धारण करवाया। गले में गुलाब की मालाएं सिर पर मोर पंख धारण करवाया। इत्र, चंदन अर्पित किए फूलों की झांकी सजाई। इस मौके पर मंदिर मंडल के अध्यक्ष एवं राज्य के पूर्व सचिव मिठालाल मेहता, उपाध्यक्ष बाबुलाल ओझा, गंगाराम जाट, कोषाध्यक्ष अशोक अग्रवाल, छोगालाल सुथार, रामप्रसाद सारस्वत, रतनलाल जाट, शंकरसिंह गुड़्डा समेत हजारों की संख्या में श्रद्घालु मौजूद थे।


अच्छे कार्यों में विघ्न डाले
कार्यक्रम में यज्ञ आचार्य पं. विश्वनाथ आमेटा ने कहा कि अच्छे कार्यों में कभी विघ्न नही डालना चाहिए। बुरे कार्य करने वालों का कभी साथ नहीं देना चाहिए। उन्होंने कहा कि जो ज्ञान जोडऩे में लगना चाहिए, वह तोडऩे में लग रहा है। अभी भी आंखें नहीं खुली तो आने वाली सात पीढिय़ां हमें माफ नहीं करेगी। अपने आत्मारूपी कमरे में सद्गुणों की महक भरें। हम आने वाली पीढ़ी को क्या देना चाहते इस दिशा में चिंतन करना चाहिए।
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जहां परमात्मा वहां आनंद ही आनंद : पं. विश्वनाथ

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श्रीसांवलियजी प्राकट्य स्थल मंदिर पर आयोजित पांच दिवसीय कलश स्थापना एवं ध्वजारोहण समारोह
आनंद में परमात्मा निवास करता है। जहां परमात्मा है वहां आंनद ही आनंद है। यह बात मंगलवार को श्रीसांवलिया प्राकट्य स्थल मंदिर में पांच दिवसीय कलश एवं ध्वजारोहण कार्यक्रम में यज्ञ आचार्य पं. विश्वनाथ आमेटा ने ने कही।

उन्होंने कहा कि जिस घर में प्रभु की सेवा पूजा होती है, वहां सदैव आनंद का वास होता है। संसार के सारे दरवाजे बंद हो जाते हैं, लेकिन प्रभु के दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं। भगवान की लीलाओं में अनेक रहस्य है। जब जीवात्मा भगवान को समर्पित हो जाती है तो उसके सारे सुख- दुख भगवान अपना लेते हैं।

मंगलवार को यज्ञ, हवन एवं पूजन हुए। महायज्ञ में 31 जोड़ों ने भाग लिया। सोमवार रात को ब्रज के लोक कलाकारों की ओर से रंगमंच पर रासलीला का मंचन किया।

श्रद्घालुओं ने विष्णु महायज्ञ में दी आहुतियां

Dainik Bhaskar : सांवलियाजी

दर्शनों के लिए लगी रही भीड़

सांवलिया सेठ के दर्शनों के लिए सोमवार को दिनभर मंदिर परिसर में भीड़ रही। चित्तौडग़ढ़, भीलवाड़ा, कोटा, उदयपुर, मध्यप्रदेश, गुजरात समेत अन्य प्रदेशों के श्रद्घालुओं ने कतार में लग सांवलिया सेठ के दर्शन किए। श्रद्घालुओं ने मेला परिसर में लगी दुकानों से खरीददारी कर झूले, चकरी का भी जमकर लुत्फ उठाया।


श्रीसांवलियजी प्राकट्य स्थल मंदिर पर आयोजित कलश एवं ध्वजारोहण कार्यक्रम

भादसोड़ा & श्रीसांवलियाजी प्राकट्य स्थल मंदिर कमेटी के तत्वावधान में आयोजित पांच दिवसीय कलश
एवं ध्वजारोहण कार्यक्रम के तहत सोमवार को 51 जोड़ों न विष्णु महायज्ञ में आहुतियां दीं। यज्ञ का आयोजन दो पारियों में हुआ। यजमानों द्वारा सांवलिया सेठ के जयकारों से माहौल भक्तिमय हो गया।

महायज्ञ में सभी के मंगलमय जीवन की कामना करते हुए रुद्रसूक्त, विष्णुसहस्त्र, महामृत्युंजय मंत्र, कर्मकांड के साथ- साथ प्रभावी प्रेरणा यज्ञ आचार्य पं. विश्वनाथ अमेटा ने दी। आमेटा ने बताया कि आज का समय इतिहास पढऩे का नहीं गढऩे का है। हनुमान, कृष्ण के ग्वाल, बाल व अुर्जन जैसा श्रेय और सम्मान पाने का अवसर है। उन्होंने सांवलियाजी की महिमा घर- घर पहुंचाने एवं उपासना के माध्यम से मानव के चिंतन और चरित्र को ऊंचा उठाने का आह्वïान किया। मंदिर कमेटी के अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्य सचिव मिठालाल मेहता भी यजमान बन कर हवन में आहुतियां दी। इनके साथ सरपंच पूरणमल पूर्बिया, मंदिर कमेटी के उपाध्यक्ष गंगाराम जाट समेत 51 जोड़ो ने आहुतियां दीं। इस मौके पर मंदिर कमेटी के उपाध्यक्ष बाबूलाल ओझा, कोषाध्यक्ष अशोक अग्रवाल, प्रचारमंत्री रतनलाल जाट, शंकरसिंह, राजेन्द्र सौमानी मौजूद थे।

राधाकृष्ण की झांकी सजाईभजन संध्या हुई

सांवलियाजी & कृष्णधाम सांवलियाजी मंदिर में सोमवार को गोवर्धन मथुरा से आए बृजकला संगम संस्थान के कलाकारों ने राधाकृष्ण की झांकी सजाई तथा भजनों की प्रस्तुतियां दी। गिर्राज बृज कला संगम के निदेशक मुकूट बिहारी कौशिक के निर्देशन में हरीश शुक्ला ने गणेश वंदना से किर्तन का शुभारंभ किया। इसके बाद राधा कृष्ण की झांकी सजाई गई तथा सांवलिया सेठ के भजनों की प्रस्तुतियां दी। इस मौके पर मंदिर मंडल के पूर्व अध्यक्ष कालूराम गुर्जर, पूर्व सरपंच हजारीदास वैष्णव, मदनलाल तिवारी, मंदिर मंडल के प्रशासनिक अधिकारी किशनलाल शर्मा, कार्यालय अधीक्षक भगवानलाल चतुर्वेदी समेत बड़ीसंख्या में श्रद्घालु मौजूद थे।

कलश, ध्वजारोहण समारोह शुरू

भास्कर न्यूज. भादसोड़ा


श्रीसांवलियाजी प्राकट्य स्थल मंदिर पर कलश स्थापना एवं ध्वजारोहण कार्यक्रम के तहत हरिबोल प्रभात फेरियां व शोभायात्रा निकाली गई, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु उमड़े। शोभायात्रा में अखाड़ा प्रदर्शन तथा सांवलिया सेठ की आकर्षक झांकी सजाई गई।

शोभायात्रा शनिवार सुबह नौ बजे प्राकट्य स्थल मंदिर से शुरू हुई। करीब एक किलोमीटर लंबी शोभायात्रा में करीब सवा सौ गांवों की प्रभात फेरियों ने भाग लिया। महिलाएं सिर पर जल कलश लिए हुए चल रहीं थीं वहीं ऊंट घोड़े तथा बैंड बाजा, बेवाण शोभा बढ़ा रहे थे। शोभायात्रा में सांवलिया सेठ की विशेष झांकी में स्वर्णजडि़त कलश रखा हुआ था। बजरंग दल के कार्यकर्ता अखाड़ा प्रदर्शन में हैरतअंगेज कारनामे प्रदर्शित कर रहे थे। शोभायात्रा का जगह जगह पुष्पवर्षा एवं जलपान करवा स्वागत किया गया। शोभायात्रा के कार्यक्रम स्थल पहुंचने के बाद महंत चेतनदास महाराज के प्रवचन हुए। इस अवसर पर सामूहिक भोज का आयोजन कर प्रसाद वितरित किया गया।

आज के कार्यक्रम: रविवार को विष्णु यज्ञ, हवन एवं पूजन का कार्यक्रम होगा। रात को ब्रज के कलाकरों द्वारा रासलीला का मंचन किया जाएगा। हवन पूजन एवं दैनिक यज्ञ का आयोजन होगा।

कार्यक्रम में हुई लाखों की घोषणाएं

कार्यक्रम में सहयोग के लिए श्रद्घालुओं ने लाखों रुपए का सहयोग दिया। मंदिर कमेटी के अध्यक्ष मीठालाल मेहता की ओर साढ़े दस किलो तांबे का कलश, कलश पर सोना चढ़ाने के लिए कोटा के प्रशांत अग्रवाल ने सौ ग्राम सोना तथा सीकेएसबी चेयरमेन चंद्रभानसिंह ने पचास ग्राम सोना दिया। जबकि जयपुर के घनश्याम दुपड़ ने 25 हजार, निम्बाहेड़ा के मदन सोमानी ने 15 हजार तथा पुराभगत परिवार की ओर से 10 हजार रुपए की सहयोग राशि प्रदान करने की घोषणाएं की।



सांप्रदायिक सद्भाव का दिया परिचय

बोहरा एवं मुस्लिम समाज के लोगो ने भी पुष्पवर्षा एवं जलपान करवा सांप्रदायिक सदभाव एवं एकता का परिचय दिया। इस मौके पर अहसान मोहम्मद, जाकिर हुसैन, रज्जाक काजी, अशरफ मोहम्मद, राजूभाई, मुल्ला अब्बास अली, उपसरपंच यूसुफअली, अकबर अली बोहरा, मोईज बोहरा, जैनुद्घिन बोहरा मौजूद थे।



सांवलियाजी :- मौनी अमावस्या मेले


सांवलियाजी. मासिक मेले के तहत अमावस्या पर श्रृंगारित सांवलियाजी की प्रतिमा














सांवलियाजी. मौनी अमावस्या पर बुधवार को सांवलियाजी मंदिर में दर्शनों के लिए लगी श्रद्धालुओं की कतार।

सांवलियाजी मंदिर मंडल के नए बोर्ड गठन की कवायद

Dainik Bhaskar : सांवलियाजी
बोर्ड में शामिल होने के लिए नेता व कार्यकर्ता प्रयासरत
कृष्णधाम सांवलियाजी मंदिर व्यवस्था संचालन करने वाले बोर्ड का कार्यकाल समाप्त होने के बाद नए बोर्ड के गठन की कवायद शुरू हो गई है। देवस्थान आयुक्त उदयपुर ने भी नए बोर्ड गठन के प्रस्ताव में जानकारी मुख्य कार्यपालक अधिकारी से मांगी है। वही कांग्रेस नेता व कार्यकर्ता बोर्ड में शामिल होने के लिए जोड़तोड़ में लगे हुए हैं।

मंदिर व्यवस्था के लिए भाजपा गठित बोर्ड का कार्यकाल गत 18 जनवरी को समाप्त होने के बाद नए बोर्ड की मांग कांग्रेस द्वारा की जा रही थी। देवस्थान आयुक्त उदयपुर ने भी नए बोर्ड के गठन की अधिसूचना के बाबत प्रस्ताव मंदिर मंडल के मुख्य कार्यपालक अधिकारी से सूचना मांगी है। इधर बोर्ड अध्यक्ष व सदस्य बनने के दावेदार अपने स्तर पर जोड़तोड़ में लगे हैं। वर्तमान में पूर्व अध्यक्ष कालूराम गुर्जर, ममतेश शर्मा, मांगीलाल शर्मा, पूर्व ट्रस्टी भैरूलाल गुर्जर, पूर्व सदस्य मनोहरलाल जैन, अशोक शर्मा आदि अध्यक्ष पद की दावेदारी कर रहे हैं। कई पदाधिकारी जिले से लेकर जयपुर तक के कांग्रेस नेताओं से अपनी सदस्यता के लिए स्थानीय लोगों के साथ क्षेत्र के कांग्रेस कार्यकर्ता भी प्रयास कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि सांवलियाजी मंदिर व्यवस्थाओं को संचालित करने के लिए बोर्ड का मनोनयन राज्य सरकार द्वारा स्थानीय जनप्रतिनिधियों की सिफारिश पर किया जाता है, जिसमें पार्टी कार्यकर्ताओं को मनोनीत किया जाता है।

उल्लेखनीय है कि तीन वर्ष के कार्यकाल वाले मौजूदा मंदिर मंडल बोर्ड ने अपना कार्यकाल गत १८ जनवरी को पूरा कर लिया है।

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